देहरादून। उत्तराखंड में भले ही इस समय प्रतिदिन 300 मीट्रिक टन से अधिक आक्सीजन तैयार हो रही है, लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड को आक्सीजन सप्लाई के लिए दूसरे राज्यों की ओर देखना पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के लिए आक्सीजन का कोटा तय कर दिया है। ऐसे में यहां तैयार हो रही आक्सीजन दूसरे राज्यों को जा रही है और उत्तराखंड को अन्य राज्यों से आक्सीजन लेनी पड़ रही है। इस लाने के लिए अभी कंटेनर पूरे नहीं है। अभी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के अनुपात में आक्सीजन की कमी नहीं है लेकिन भविष्य में यदि मरीजों की संख्या बढ़ती है तो फिर आक्सीजन को लेकर स्थिति चिंताजनक हो सकती है।
उत्तराखंड में इस समय बड़ी संख्या में मरीज आक्सीजन सपोर्टेड बेड और आइसीयू में भर्ती हैं। आक्सीजन सपोर्टेड बेड में 10 लीटर प्रति मिनट और आइसीयू बेड में 24 लीटर प्रति मिनट के हिसाब से सप्लाई होनी चाहिए। अभी प्रदेश में 5500 आक्सीजन सपोर्टेड बेड, 1390 आइसीयू और 876 वेंटिलेटर हैं। इनके हिसाब से उत्तराखंड को प्रतिदिन 165.18 मीट्रिक टन आक्सीजन चाहिए। कुल उपलब्ध बेड के सापेक्ष अभी जो बेड भरे हैं, उसके लिए प्रतिदिन 130 मीट्रिक टन आक्सीजन की जरूरत है। प्रदेश के पास अभी 126 मीट्रिक टन आक्सीजन उपलब्ध है। इसके अलावा अस्पतालों में लगे आक्सीजन प्लांट से पांच मीट्रिक टन आक्सीजन मिल रही है, जिससे मौजूदा जरूरत पूरी हो रही है। यहां गौर करने योग्य बात यह है कि उत्तराखंड के लिए केंद्र सरकार ने 183 मीट्रिक टन का कोटा तय किया हुआ है। इसमें से भी 60 मीट्रिक टन आक्सीजन उत्तराखंड को दूसरे राज्यों से लेनी है। इसमें 40 मीट्रिक टन जमशेदपुर, झारखंड और 20 मीट्रिक टन दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल से मिलेगी। इस आक्सीजन की लगातार सप्लाई के लिए प्रदेश सरकार को 12 कंटेनर चाहिए। प्रदेश के पास अभी केवल दो ही कंटेनर उपलब्ध हैं। ऐसे में इस आक्सीजन को लाना भी एक चुनौती है।