देहरादून। कोरोना वायरस से उपजी महामारी की दूसरी लहर उत्तराखंड के लघु, कुटीर और सूक्ष्म उद्योग (एमएसएमई सेक्टर) की सेहत पर भारी पड़ रही है। इस श्रेणी की औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन 50 फीसद तक घट गया है। कुछ इकाइयां तो दोबारा बंदी की कगार पर पहुंच गई हैं। इसकी वजह है कच्चे माल और कामगारों की उपलब्धता के साथ तैयार उत्पाद की मांग में आई कमी। इन हालात में लघु उद्यमियों को केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से उद्योग में जान फूंकने के लिए मदद के कदम उठाए जाने की दरकार है।
कोरोना की रोकथाम के लिए एक साल पहले 22 मार्च 2020 को लगे लॉकडाउन से पूरे देश में लघु उद्योग का पहिया थम गया था। राज्य के तीन बड़े औद्योगिक क्षेत्रों सेलाकुई, हरिद्वार व काशीपुर में भी 62 हजार से अधिक लघु औद्योगिक इकाइयों में ताले लटक गए थे। लॉकडाउन लागू होने के 67 दिन बाद केंद्र सरकार ने औद्योगिक इकाइयों को जिला प्रशासन की अनुमति के बाद 30 फीसद श्रमिकों के साथ उत्पादन शुरू करने की इजाजत दी थी। इसके बाद अनलॉक में प्रतिबंध लगातार कम होते गए। अब जाकर उत्पादन रफ्तार पकड़ने लगा था, मगर कोरोना की दूसरी लहर ने इन औद्योगिक इकाइयों को फिर अतीत की तरफ धकेल दिया है। उद्यमियों का कहना है कि इस वर्ष अप्रैल में कोरोना का संक्रमण दोबारा बढ़ने पर देशभर में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लागू होने के साथ ही कारोबार का नीचे जाना शुरू हो गया था। अब बाजार बंद होने से तैयार माल बिक नहीं पा रहा है। उस पर कच्चे माल की बढ़ी कीमत ने कमर तोड़ दी है। कुछ श्रमिक संक्रमित हैं तो कुछ कोरोना का कहर बढ़ने के बाद मूल निवास को लौट गए हैं। इस सबके चलते कुछ औद्योगिक इकाइयां तो बंदी की कगार पर पहुंच गई हैं। गिफ्ट आइटम जैसे कम मांग वाले उत्पाद बनाने वाली इकाइयों में दिन में एक-दो घंटे ही उत्पादन किया जा रहा है।