भारतीय संस्कृति के पद चिन्ह ‘विश्वभर में हैं। कृतिवास’ और कई दूसरी रामकथाओं में ‘रावण’ के एक भाई ‘अहिरावण’ की कथा आती है। ‘श्री राम’ के साथ युद्ध के दौरान जब ‘लक्ष्मण जी’ ने ‘रावण’ के बलशाली बेटे ‘मेघनाद’ का वध कर दिया तो ‘रावण’ एकदम हताश-निराश हो गया कि अब मेरा क्या होगा और इसी चिंता में उसने अपने एक भाई ‘अहिरावण’ से मदद मांगी।’अहिरावण’ पाताल देश का राजा था, उसने जब ‘रावण’ को कष्ट में देखा तो उसने कहा कि भाई! मैं जरूर आपकी मदद करूँगा और इसी वादे के तहत वो ‘सागर’ किनारे उस जगह आ गया जहाँ ‘राम जी’ और ‘लक्ष्मण जी’ की कुटिया थी। पर जैसे ही उसके इधर की सूचना ‘विभीषण’ को मिली उसने ‘हनुमान जी’ से कहा कि ये धूर्त प्रभु ‘श्री राम’ और भ्राता ‘लक्ष्मण’ का अपहरण करने की नीयत से यहाँ आया है इसलिए आप प्रभु की कुटिया के बाहर पहरा दीजिये और किसी को भी अंदर नहीं आने दीजिये। “माया विधा” के जानकार ‘अहिरावण’ ने जब ये देखा तो उसने छल से अपना रूप ‘विभीषण’ का बना लिया और धोखे से राम जी की कुटिया में घुस गया और सोते हुए प्रभु ‘राम’ और ‘लक्ष्मण’ का अपहरण कर लिया।
जब ‘हनुमान जी’ को ये पता चला और उन्होंने ‘विभीषण’ को इस घटना के बारे में बताया तो ‘विभीषण’ ने कहा कि जल्दी ही उन्हें बचा कर लाना होगा वर्ना ये दुष्ट देवी के सामने दोनों भाइयों की बलि दे देगा। ये सुनते ही ‘विभीषण’ के बताये रास्तों पर उड़ते हुए ‘हनुमान जी’ ‘पाताल देश’ गए और वहां ‘अहिरावण’ के महल में प्रवेश करने लगे तो द्वार पर एक बालक ने उन्हें रोक दिया। आश्चर्यजनक रूप से वो बालक दिखने में बिलकुल हनुमान जी जैसा ही था। विस्मित ‘हनुमान जी’ ने उससे उसका परिचय पुछा तो उसने कहा- मेरा नाम ‘मकरध्वज’ है और मैं ‘पवनपुत्र हनुमान’ का पुत्र हूँ। ‘हनुमान जी’ क्रोधित हो गए कि मैं ‘बाल-ब्रह्मचारी’ हूँ तो मेरा पुत्र कैसे हो सकता है? उनको क्रोधित देखकर उस बालक ने कहा कि मुझे एक ऋषि ने बताया था कि लंका दहन के बाद आग की तपिश के कारण आपको बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए अपने दहन को शांत करने के लिए आपने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए समुद्र में छलाँग लगाई तो आपके शरीर से पसीने की एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। जिस समय वो बूंद गिरी उस समय एक बड़ी मछली (जो मेरी माँ हैं) ने भोजन समझकर वह बूँद निगल ली। उनके उदर में जाकर उस बूँद ने एक शरीर का रूप ले लिय। वो मछली तैरते-तैरते इस “पातालदेश” में आ गयी। जहाँ मुझे मछुआरों ने मछली के पेट से निकाल दिया और मेरे विचित्र जन्म को देखकर ‘अहिरावण’ जो मेरे महाराज हैं वो मुझे ले आएं और मुझे अपने महल का प्रहरी बना दिया।इसलिए हे पिता ! मैं अपने स्वामी की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता। अतएव अंदर जाने से पूर्व आपको मुझसे युद्ध करना पड़ेगा।
पिता और पुत्र के बीच बड़ा लम्बा युद्ध चला जहाँ ‘हनुमान’ जी ने अपने पुत्र को हरा दिया और उसे अपने पूँछ में बांधकर वो ‘पाताललोक’ के भीतर पहुंचे। पराजित ‘मकरध्वज’ ने उन्हें बताया था कि अंदर आपको एक विशाल सेना मिलेगी जिससे लड़ने में बहुत समय नष्ट होगा और तब तक ‘अहिरावण’ आपके स्वामियों की बलि दे देगा इसलिए अगर आपको समय बचाना है तो एक स्थान पर रखे पांच विशिष्ट दीपक को आपको एक साथ एक बार में ही बुझाना पड़ेगा। कहा जाता है की ‘हनुमान जी’ ने उस समय ‘पंचमुखी रूप’ धारण किया था और अपने पाँचों मुख से फूंक मारकर पाँचों दीपक को एक साथ बुझा दिया और इसी के साथ ‘अहिरावण’ की पूरी सेना नष्ट हो गयी। फिर उन्होंने ‘अहिरावण’ का वध कर “राम-लक्ष्मण” को सुरक्षित वापस लेकर आए। जब ‘राम जी’ ने उनके पूँछ में लिपटे बालक को देखा तो पूछा ये कौन है हनुमान? तो ‘हनुमान जी’ ने उस बालक का परिचय कराया। ‘मकरध्वज’ का परिचय सुनकर ‘राम जी’ ने उन्हें ‘पातालदेश’ का राजा बना दिया। हमारे यहाँ प्रसिद्ध इस कथा की पुष्टि हुई जब ‘मध्य अमेरिका’ के एक देश ‘होंडुरास’ के अत्यंत प्राचीन नगर ‘सियुदाद ब्लांका’ में खुदाई शुरू हुई। वहां कई सारी मूर्तियां मिली जिसमें एक मूर्ति एक वानर की है जिनके हाथ में गदा है, उसके बगल में ही एक और उसी की तरह की एक और मूर्ति है जिसके हाथ में गदा नहीं है। ये मूर्तियां ‘हनुमान जी’ और उनके पुत्र ‘मकरध्वज’ की हैं। ‘कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी’ के प्रोफेसर ‘क्रिस्टोफर फिशर’ के नेतृत्व में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भूगर्भ में 3-डी मैपिंग की ‘लीडर’ तकनीक से ‘होंडुरास’ के इस प्राचीन रहस्यमय शहर ‘सियुदाद ब्लांका’ का पता तब लगाया था जब उनके हाथ एक अमेरिकी खोजकर्ता ‘थियोडोर मोर्डे’ की एक रिपोर्ट लगी थी जो उन्होंने 1940 में की थी।
अपनी उस शोध में उन्होंने बतलाया था कि इस प्राचीन शहर के लोग एक वानर देवता की पूजा करते थे। इसके सत्तर वर्ष बाद यानि 2010 में ‘लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग तकनीक’ की मदद सेे होंडुरास के घने जंगलों में छिपे मस्कीटिया क्षेत्र में यह प्राचीन शहर मिल जिसने भारत से इसका संबंध जोड़ दिया।हमारे पुराणों में इन क्षेत्रों को ही “पातालदेश” कहा गया है जो ‘अहिरावण’ की राजधानी थी। संभवतः उसकी या उसके बाद राजा बने ‘मकरध्वज’ के राज्य का विस्तार उसके आसपास के क्षेत्र में भी था। यही कारण है कि ‘होंडुरास’ के पड़ोस के देश ‘ग्वाटेमाला’ में भी ‘हनुमान जी’ या उन जैसी दो विशाल प्रतिमाएं मिली हैं। अमेरिकी ‘माया’ और ‘आयर’ सभ्यताओं के शिलालेखों में इन वानर देवताओं का प्रचलित नाम हॉल्वेर और ग्वाटेमाला में विल्क हुवेमान है। माया सभ्यता में ‘हॉल्वेर’ को वायु का देवता मानकर पूजा जाता है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि दुनिया में सर्वदूर तक हिन्दू संस्कृति के चरण चिन्ह बिखरे पड़े हैं जिन्हें हम अपने पुराणों और दूसरे प्राचीन ग्रँथों के संकेतों को डीकोड कर समझ सकते हैं। मकरध्वज के जन्म की इस अदभुत कथा को हम क्लोनिंग से जोड़ कर देख सकते हैं मगर जरूरत है कि हम अपने ग्रँथों के प्रति सम्मान रखें और उसे वर्त्तमान संदर्भों में समझने की कोशिश करें न कि उसे मिथ और अवैज्ञानिक कहकर खारिज़ कर दें।
अब हम इसके लिए तैयार हैं. अभिजीत