आज से 843 साल पहले गुजरात की एक महारानी नाइकी देवी ने मुहम्मद गोरी को युद्ध के मैदान में बहुत बुरी तरह पराजित किया था। मुहम्मद गोरी जैसे विदेशी आक्रमणकारी को देश से भागने पर मजबूर करने वाली भारत की इतनी महान वीरांगना का इतिहास… कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भारतवासियों से छुपा लिया। चालुक्य राजवंश की महारानी नाइकी देवी और मुम्मद गोरी के युद्ध का वर्णन कई मुस्लिम इतिहासकारों… समकालीन हिंदू कवियों और साहित्यकारों ने अपने ग्रंथों में किया है। 1178 ईस्वी में राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू की पहाड़ियों के पास कसाहर्दा नाम की जगह पर ये भयंकर युद्ध हुआ था जिसे इतिहास में बैटल ऑफ कसाहर्दा के नाम से जाना जाता है।
13वीं शताब्दी के इतिहासकार मिनहास सिराज ने अपने फारसी ग्रंथ में मुहम्मद गोरी की हार का जिक्र करते हुए लिखा है कि मुहम्मद गोरी ने गुजरात के चालुक्यों के प्रदेश अन्हिलवाड़ पर हमला किया था इस युद्ध में मुहम्मद गोरी की बहुत बुरी हार हुई थी और इस्लाम को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। 16वीं शताब्दी के मुस्लिम इतिहासकार बदायुंनी ने भी महारानी नाइकी देवी की जीत और मुहम्मद गोरी की हार का जिक्र किया है ।
गुजरात के कवि सोमेश्वर ने भी अपने ग्रंथ में लिखा है कैसे 13 साल के बाला मूलराज द्वितीय ने मलेच्छ राजा को हरा दिया था । गुजरात के ही कवि उदयप्रभा सूरी ने अपने ग्रंथ सुकृता कीर्ति कल्लोलिनी में मुहम्मद गोरी की हार का जिक्र किया है । 14 वीं शताब्दी के जैन ग्रंथ मेरु तुंग में भी महारानी नाइकी देवी के शौर्य और पराक्रम का वर्णन किया गया पूरे युद्ध का वर्णन करेंगे लेकिन पहले ये जान लीजिए कि आखिर महारानी नाइकी देवी कौन थीं ? गुजरात का पाटन जिला जो कि उत्तर गुजरात में राजस्थान के बॉर्डर से लगता हुआ मौजूद है… कभी गुजरात के चालुक्यों की राजधानी हुआ करता था । 1178 ईस्वी में इस राज्य की महारानी नाइकी देवी थी । उनके पति अजय पाल का स्वर्गवास हो गया था । वो विधवा का जीवन व्यतीय कर रही थीं और उनका एक बालक था जिसका नाम था बाला मूलराज द्वितीय और यही उस चालुक्य राजवंश का उत्तराधिकारी था । मुहम्मद गोरी ने साल 1173 ईस्वी में अफगानिस्तान का काफी बड़ा इलाका जीत लिया था । इसके बाद इस्लाम को भारत में प्रचारित करने के लिए उसने अपनी सेना के साथ भारत में विजय अभियान शुरू किया । मुल्तान और उच (आज के पाकिस्तान के शहर ) पर मुहम्मद गोरी ने बहुत आसानी से कब्जा कर लिया और इसके बाद वो सीधे राजपुताना से होते हुए चालुक्य राज्य की राजधानी पाटन पहुंच गया । 1178 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने महारानी नाईकी देवी के पास ये संदेशा भेजा कि इस्लाम की सेना के सामने महारानी आत्मसमर्पण कर दें । मुहम्मद गोरी अपनी जीत को लेकर आत्मविश्वास से भरा हुआ था क्योंकि उसे लगा कि एक विधवा रानी और एक 13 साल का बच्चा शक्तिशाली तुर्क सेना का मुकाबला नहीं कर पाएं
उसने महारानी नाइकी देवी को ये संदेशा भिजवाया कि वो खुद अपने बच्चे के साथ उसके हरम में आ जाए और चालुक्य वंश के रनिवास की सारी रानियों को भी मुहम्मद गोरी के सुपुर्द कर दे तब ही पाटन शहर को इस्लाम की तलवार से बचाया जा सकता है। अत्यंत अपमानजनक बातें सुनकर महारानी नाईकी देवी के रक्त में उबाल आ गया और उन्होंने युद्धभूमि में जाकर मुहम्मद गोरी को सबक सिखाने का फैसला लिया । साथ ही चालुक्य वंश के समस्त शूरवीरों को फौरन लड़ने के लिए राजधानी में आमंत्रित किया । महारानी नाइकी देवी ने अपने ओजस्वी वचनों से पूरी राजधानी को युद्ध के लिए मरने मारने को तैयार कर दिया। पाटन के लोगों ने भी अपनी महान रानी के सम्मान में अपने प्राणों को तलवार की नोंक पर सजा दिया। आज जिसे आप गोवा कहते हैं वो पूरा प्रदेश कभी परमर्दि राजवंश के साम्राज्य का हिस्सा था और महारानी नाइकी देवी इसी परमर्दि राजवंश के प्रतापी राजा शिवचित्ता परमर्दिदेव की बेटी थीं। राजा परमर्दिदेव ने अपनी बेटी नाइकी देवी को तलवार बाजी, घुड़सवारी और मिलिट्री स्ट्रेटेजी में प्रशिक्षित किया था और जिसका लाभ उनको इस महान युद्ध में मिला । महारानी नाइकी देवी एक बड़ी डिप्लोमैट यानी कूटनीतिज्ञ भी थीं । और इसीलिए उन्होंने उत्तर भारत के सभी हिंदू राजाओं को मुहम्मद गोरी से युद्ध के लिए आमंत्रित किया । लेकिन इस प्रयास में उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली… हालांकी चहमान और परमार वंश के तीन राजाओं ने युद्धभूमि में महारानी नाइकी देवी का साथ दिया, क्योंकि महारानी नाइकी देवी की सेना की संख्या कम थी इसलिए उन्होंने मुहम्मद गोरी की सेना को हराने के लिए अपने मन मुताबिक युद्ध का स्थान चुनने का फैसला किया । मुहम्मद गोरी पाटन पहुंचा भी नहीं था… राजस्थान के सिरोही के पास माउंट आबू की पहाड़ियों के बीच था… उसी जगह पर महारानी नाइकी देवी ने मुहम्मद गोरी की सेना पर अचानक हमला बोल दिया। महारानी नाइकी देवी हाथी पर सवार थीं और उन्होंने अपने गोद में अपने 13 साल के बेटे बाला मूलराज द्वितीय को बैठाया हुआ था। महारानी ने युद्धभूमि के अंदर अपने सभी सेनापतियों को आदेश दिया कि वो पहाड़ियों के बीच फंसी हुई इस्लामी सेना के सैनिकों की गर्दनें उतार लें। खचा खच खचा खच… मुहम्मद गोरी की सेना का ऐसा सफाया पहले कभी नहीं हुआ था… इस्लामी सेना के खून से माउंट आबू की पहाड़ियां लाल हो रही थीं ।
मुहम्मद गोरी एक औरत से हारकर जहन्नुम नहीं जाना चाहता था.. उसने युद्धभूमि में ही मरने का फैसला कर लिया था। अत्यंत घायल अवस्था में मुहम्मद गोरी युद्धभूमि में अचेत होकर गिर पड़ा लेकिन उसके शातिर अंगरक्षक उसे युद्धभूमि से निकालकर भागने में कामयाब हो गए । हालांकी एक महिला के हाथों मिली इस हार की शर्मिंदगी से ताउम्र उसका सिर शर्म से झुका ही रहा। इस्लामी सेना की इतनी बड़ी और ऐतिहासिक हार हुई थी कि उसके बाद कभी किसी इस्लामी सेना ने सीधे गुजरात पर हमला करने का दुस्साहस नहीं किया। मुहम्मद गोरी हारकर मुल्तान के रेगिस्तान में लौट गया और इसके बाद उसने पंजाब और उत्तर भारत के हिस्सों पर हमला किया और गुजरात के पाटन फिर 10 साल तक नहीं गया। इस्लामी सेना को इस हार का झटका इतना जबरदस्त लगा कि इसके बाद भारत पर हमला करने वाले तैमूर लंग और बाबर ने भी कभी सीधा गुजरात पर हमला नहीं किया बल्कि पहले पंजाब और उत्तर भारत के ऊपरी हिस्सों पर हमला करना ज्यादा उचित समझा। इस पूरे युद्ध में महारानी नाइकी देवी से सिर्फ यही गलती हुई कि उन्होंने अत्यंत वीरोचित आदर्शों और क्षत्रियों की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए… जान बचाकर भागते हुए मुहम्मद गोरी की पीठ पर वार नहीं किया और उसकी जान बख्श दी । इसी मुहम्मद गोरी ने बाद में भारत पर लगातार सफल हमले करके भारत में इस्लामी राज कायम कर दिया था। महारानी नाइकी देवी ने जो शौर्य दिखाया वो अप्रतिम है उसकी दुनिया की और किसी भी वीरांगना से तुलना ही नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे देश के स्कूलों में महारानी नाइकी देवी के बारे में आज तक कुछ भी नहीं बताया गया है।
महारानी नाईकी देवी को प्रणाम