नई दिल्ली। भारत को वर्ष 2070 तक नेट जीरो कार्बन इकोनमी यानी बहुत ही कम कार्बन उत्सर्जित करने वाले देश के तौर पर स्थापित करने में सिर्फ सौर, पवन या दूसरी रिनीवेबल एनर्जी स्त्रोतों के भरोसे ही नहीं रहना होगा बल्कि देश में परमाणु ऊर्जा को भी बढ़ावा देना होगा। कई विकसित देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने में परमाणु ऊर्जा की अहमियत को स्वीकार किया है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा को गैर पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों की तरह ही बढ़ावा देना शुरू किया है।
भारत को भी यह काम करना चाहिए। यह बात देश के प्रख्यात भौतिकविद और परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा.अनिल काकोदकर ने कार्बन उत्सर्जन कम करने और परमाणु ऊर्जा की अहमियत पर एक रिपोर्ट जारी करने के दौरान कही। यह रिपोर्ट विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की तरफ से तैयार की गई है जिसमें पहली बार भारत के परिप्रेक्ष्य में परमाणु ऊर्जा के भविष्य व इसके भावी रोडमैप का जिक्र है। अगर सरकार की तैयारियों की तरफ देखें तो भी यह स्पष्ट होता है कि परमाणु ऊर्जा को लेकर भारी भरकम लक्ष्य तैयार किए गए हैं और उसके हिसाब से कदम भी बढ़ाए जा रहे हैं। कुछ हफ्ते पहले ही संसद में परमाणु ऊर्जा विभाग की तरफ से बताया गया कि देश में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की कुल उत्पादन क्षमता अभी महज 6,780 मेगावाट है जो वर्ष 2030-31 तक बढ़कर 22,480 मेगावाट हो जाएगी।
भारत में घरेलू तकनीक पर विकसित 10 हेवी वाटर रिएक्टर लगाये जा रहे हैं जिनकी क्षमता 7,000 मेगावाट है। मध्य प्रदेश के चुटका, कर्नाटक के कैगा, राजस्थान के बांसवाड़ा व हरियाणा के गोरखपुर में ये परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगेंगे। लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना है कि घोषित 22,480 मेगावाट क्षमता जोड़ने के अलावा परमाणु उर्जा से अगले 10 से 15 वषरें के भीतर 30 हजार मेगावाट क्षमता और जोड़ने की रिपोर्ट पर काम हो रहा है। घरेलू तकनीक की हेवी वाटर रिएक्टर विकसित करने के बाद क्षमता जोड़ना बड़ी चुनौती नहीं रहेगी। वर्ल्ड न्यूकिलयर एसोसिएशन की ताजा रिपोर्ट बताती है पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु ऊर्जा के लिए रिएक्टर बनाने का काम चीन और भारत में हो रहा है। चीन में 168 नए रिएक्टर बनाने का काम हो रहा है जबकि भारत की योजना अगले कुछ वर्षो में परमाणु ऊर्जा के लिए 72 नए रिएक्टर लगाने की है।
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की रिपोर्ट तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले व भारत के ईरान में पूर्व राजदूत डीपी श्रीवास्तव का कहना है कि परमाणु ऊर्जा प्लांट दूसरे किसी भी ऊर्जा प्लांट (सोलर, विंड, थर्मल आदि) के मुकाबले कम कार्बन उत्सर्जित करते हैं। रिपोर्ट कहती है कि परमाणु ऊर्जा प्लांट से 5.1 से 6.4 ग्राम प्रति किलोवाट का प्रदूषण होता है जबकि पनबिजली परियोजनाओं से छह से 147 ग्राम, सोलर से आठ से 83 ग्राम, पवन ऊर्जा से 16 ग्राम तक, गैस आधारित बिजली परियोजनाओं से 513 ग्राम तक और कोयला परियोजनाओं से 751 ग्राम प्रदूषण होता है। सरकार को सुझाव दिया गया है कि वह परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को दूसरे रिनीवेबल ऊर्जा स्त्रोतों की तरह ही तरजीह दे।