देहरादून। ईश्वर न तो दूर है और न अत्यंत दुर्लभ ही है, बोध स्वरूप एकरस अपना आत्मा ही परमेश्वर है, नाम और रूप विभिन्न दिखते है। धर्म को जानने वाला दुर्लभ होता है, उसे श्रेष्ठ तरीके से बताने वाला उससे भी दुर्लभ, श्रद्धा से सुनने वाला उससे दुर्लभ और धर्म का आचरण करने वाला सुबुद्धिमान् सबसे दुर्लभ है। भगवान व्यवस्था नहीं जीवन की अवस्था देखते हैं, वो व्याकुलता देखते हैं। यह बात दिल्ली पुष्प विहार साकेत में शक्ति मन्दिर में शिवपुराण कथा समिति द्वारा आयोजित शिवपुराण के 9वें दिन ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई ने कहे। उन्होंने कहा कि शिवपुराण कथा सुनने में असमर्थ हो तो प्रतिदिन जितेन्द्रिय होकर मुहूर्त (क्षण) मात्र सुने। यदि मनुष्य प्रतिदिन के सुनने में असमर्थ हो तो पुण्यमास आदि में शिव की कथा सुनें। जो मनुष्य शिव की कथा को सुनता है वो कर्मरूपी बडे वन को भष्म करके संसार में तर जाता है। जो पुरुष मुहूर्त मात्र आधे मुहूर्त या क्षणभर शिव की कथा को भक्ति से सुनते हैं उनकी कदापि दुर्गति नही होती है।
हे मुने जो संपूर्ण दानों में वा सब यज्ञों में पुण्य होता है वह फल शंभु के पुराण सुनने से निश्चय होता है। विशेषकर कलयुग में पुराण के श्रवण के बिना मनुष्यों की मुत्तिफ, ध्यान में तत्परता घ्र कोई परमधर्म संभव नही है। पुराण का मार्ग सदा श्रेष्ठ है, बिना शिव के यह संसार इस प्रकार नही शोभित होता जिस प्रकार बिना सूर्य के जीवलोक शोभा नही पाता। मनुष्यों को शिव का पुराण का सुनना, नामकीर्तन करना कल्पवृक्ष के फल के समान मनोहर कहा है इसमें कुछ संदेह नही है। कलियुग में धर्म आचर को त्यागने वाले दुर्बुद्वि वाले मनुष्यों के हित करने को शिव ने पुराण नामक अमृत रस विधान किया है। अमृत को पीकर एक ही मनुष्य अजर अमर होता है परंतु शिव की कथा रूपी अमृत के पान करने से सब कुल ही अजर अमर हो जाता है।