देहरादून। लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण का चुनाव अभियान राजनीतिक दलों और मतदाताओं की खामोशी के चलते अभूतपूर्व ढंग से फीका तो नजर आ ही रहा था लेकिन पूर्वाेत्तर के कुछ राज्यों और पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो उत्तराखण्ड, बिहार, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के मतदताओं ने निर्वाचन आयोग की लाख कोशिशों के बावजूद मतदान के प्रति अभूतपूर्व ढंग से बेरुखी का इजहार कर राजनीतिक दलों के प्रति अरुचि का इजहार कर दिया। उत्तराखण्ड जैसे राज्य में जहां 35 लाख लोगों ने मतदान नहीं किया वहीं दर्जनों गावों ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव में मतदान का बहिष्कार कर विकास के दावों और जनता के प्रति संवेदनशीलता की पोल भी खोल दी। कुल मिला कर प्रदेश के चार जिलों में बुनियादी सुविधाएं न मिलने से नाराज होकर ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार किया है। चकराता, मसूरी, पिथौरागढ़ में भी लोगों ने सड़क, पानी आदि की सुविधा के विरोध में मतदान का बहिष्कार किया।
निर्वाचन आयोग द्वारा देर शाम को जारी आंकड़ों के अनुसार पूर्वाेत्तर के असम मेघालय जैसे हिमालयी राज्यों और खास कर जातीय हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर के मतदाताओं ने मतदान के प्रति खास रुचि दिखाई वहीं उत्तराखण्ड के मतदाताओं ने न केवल मतदान के प्रति अरुचि दिखाई बल्कि अभूतपूर्व ढंग से मतदान का बहिष्कार कर विकास के खोखले दावों की पोल भी खोल दी। उत्तराखण्ड में 2019 के मुकाबले इस बार मतदान प्रतिशत गिरने के साथ ही मतदान बहिष्कार में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2019 में जहां 10 स्थानों पर चुनाव का बहिष्कार हुआ था, इस बार के चुनाव में यह आंकड़ा 35 को पार कर गया है। यहां धारचूला में तीन बूथों पर मतदान का बहिष्कार किया गया। उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों से अब तक प्राप्त सूचनाओं के अनुसार बुनियादी सुविधाओं के अभाव के विरोध में राज्य में 35 से ज्यादा गांवों के लोगों ने मतदान का बहिष्कार कर सत्ताधारियों की बेरुखी के प्रति अपने गुस्से का इजहार किया। मूलरूप से कनेक्टिविटी की सुविधा न होने से इन गांवों के लोग परेशान हैं तथा काफी पहले से ये ग्रामीण चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दे रहे थे। लेकिन सत्ता और हाकिमी के गरूर ने इन ग्रामीणों के प्रतिकार की आवाजें अनसुनी कर दीं। जिन गावों को विकास का भरोसा देकर बहिष्कार न करने के लिये मनाया भी गया वहां बहुत कम मतदान हुआ।