ऋषिकेश। 21 से 27 फरवरी को दुनिया के कई देश जस्टिस फॉर एनिमल्स वीक के रूप में मनाते हैं ताकि पशुओं के साथ संपत्ति की तरह नहीं बल्कि जीवित प्राणियों की तरह व्यवहार किया जाये। घरेलू स्तर पर, कृषि के रूप में उपयोग किये जाने वाले पशु और वन्य प्राणियों के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकने हेतु जागरूकता बढ़ाने के लिये इस सप्ताह को समर्पित किया गया है।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जस्टिस फॉर एनिमल्स वीक के अवसर पर कहा कि आये दिन हम पशुओं के साथ हो रही आपराधिक घटनायें, दुर्व्यवहार, क्रूरता को देखते और सुनते हैं इसके लिये एक सुदृढ़ न्याय व्यवस्था के साथ जन जागरूकता भी जरूरी है। हम पशुओं के साथ क्रूरता और दुरुपयोग सभ्यता के विकास के साथ बढ़ते देख रहे है। हमें अपने बच्चों और युवा पीढ़ी को समझाना होगा कि प्रकृति के साथ सामंजस्य और पशुओं के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना नितांत आवश्यक है। मनुष्य अपनी निजी स्वतंत्रता के लिये कई बार पशुओं के विरुद्ध हिंसा करते हैं और अब यह एक प्रचलन की तरह बढ़ते जा रहा है।
स्वामी जी ने कहा कि पशुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा के सबसे वीभत्स रूपों में से एक यह भी है कि मानव जीवन का स्तर सुधारने के लिये जो अनुसंधान किये जाते हैं उनका प्रभाव देखने के लिये पशुओं पर प्रयोग किये जाते हैं जो कि अमानवीय व्यवहार की श्रेणी में आता है। हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि मानव की तरह ही पशु और प्रकृति भी इस सृष्टि के अविभाज्य अंग हैं जिनके प्रति कृतज्ञता पूर्ण व्यवहार करना सभी का परम कर्तव्य है क्योंकि मानव सभ्यता के विकास में प्रकृति और पशुओं का भी अहम योगदान रहा है। पशुओं के प्रति हो रही हिंसा अनैतिकता है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मानव सभ्यता के विकास के साथ मानव और पशु के बीच के संबंध मित्रवत् थे परन्तु विकास के साथ जैसे-जैसे मानव का स्वार्थ बढ़ते गया पशुओं के विरूद्ध शोषण बढ़ने लगा जो कि आज मानवता के सामने एक नैतिक प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है। हिन्दू धर्म में पशुओं के प्रति सदव्यवहार की प्रेरणा दी गयी है पशुओं के प्रति दया भाव, अहिंसा और संवेदनापूर्ण नितांत आवश्यक है और यही नैतिकपूर्ण व्यवहार भी है। आईये आज जस्टिस फॉर एनिमल्स वीक के अवसर पर एक संकल्प ले कि प्रत्येक प्राणी की स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे तथा उनके प्रति नैतिकतापूर्ण व्यवहार करेंगे।