-तब यह शहर भारत का एक मुख्य शहर था और हिन्दू बाहुल्य भी
परसों एक सुहृदय भारतीय वरिष्ठ मित्र ने एक पाकिस्तानी सहकर्मी से कहा-सी यू नेक्स्ट वीक...14जी को हम पाकिस्तान की जश्न-ए-आज़ादी मनाएंगे...उसके अगले दिन भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे...दोनों हँसे, और फिर मेरी ओर देखा प्रतिक्रिया के लिए...
कुछ सेकंड का एक awkward pause आया…दोनों मेरी ओर देखते रहे, उन्हें लगा कि मैं कुछ कहना चाहता हूँ…मैं भी कुछ क्षणों तक उन दोनों को देखता रहा. मन में इतनी सारी बातें गुजरीं कि कुछ भी नहीं कह पाया. मैं अपनी बात को एक छिछली बहस में बदलते देखने को तैयार नहीं था.
पाकिस्तान के जश्न-ए-आज़ादी की मुबारकबाद मैं दूँ? क्यों भला? पाकिस्तान के होने का हमारे लिए क्या मतलब है, कभी सोचा है? पाकिस्तान के होने का मतलब है हमारी मातृभूमि का विभाजन…करोड़ों हिंदुओं का अपने पितरों की भूमि से विस्थापन…लाखों का कत्ल, हज़ारों, या शायद लाखों माताओं बहनों का बलात्कार…ट्रेनों में कटी लाशें, जिसके डब्बों पर लिखा था आज़ादी का तोहफा…बर्छियों पर बिंधे बच्चे…इसका जश्न मनाऊँ?
चलो, मरने वाले मर गए…उनके लिए रोने वाले भी मर गए…मान लिया, ये घाव भर जाने दें…
पर पाकिस्तान के बनने से जो मरे वो सिर्फ कुछ इंसानी ज़िन्दगियाँ ही नहीं थीं. पाकिस्तान के पैदा होने से जो सबसे बड़ी मौत हुई वह एक सभ्यता की मौत थी. जहाँ दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता पैदा हुई थी, वह उस जगह से उजड़ गई…जिस सिंधु नदी के किनारे हमारे वेद लिखे गए, वह सिंध पराया हो गया. बप्पा रावल की रावलपिंडी अपनी नहीं रही, महाराजा रणजीत सिंह का, भगत सिंह का लाहौर अपना नहीं रहा…
विभाजन का दर्द आपका अपना दर्द क्यों नहीं है? 10 लाख हिंदुओं का खून बहा, वह आपका अपना खून क्यों नहीं है? इंसान मरते हैं, दूसरे पैदा हो जाते हैं…पर जो असली ट्रेजेडी है, वह है एक सभ्यता का मरना. अब फिर सिन्धु तट पर कभी वेद ऋचाएं गूंजेंगी क्या? फिर किसी तक्षशिला में कोई चाणक्य खड़ा होगा क्या? हम पाकिस्तान की जश्न-ए-आज़ादी में शरीक हों? अमन की आशा के गीत गाये? क्यों? किसी नौशाद, किसी साज़िद, किसी यास्मीन और फारूक की दोस्ती मुझे बहुत प्यारी हो सकती है…पर इतनी नहीं कि इसकी यह कीमत चुकाऊँ…इस दर्द को भूल जाऊँ. विभाजन का दर्द मेरा अपना है…मैं हर पंद्रह अगस्त को इसे जिंदा रखने की शपथ लेता हूँ…अखंड भारत के स्वप्न के गीत गाता हूँ…अमन की आशा के नहीं…
राजीव मिश्रा