देहरादून। सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर का कहना है कि सचिवालय और विधानसभा में ऐसे-ऐसे अयोग्य अधिकारी बैठे हैं जिन्हें या तो नियम कानूनों की कोई जानकारी नहीं है या फिर वह काम करना नहीं चाहते और हर काम को टालने की कोशिश करते रहते हैं। उनका कहना है कि उनके द्वारा विधानसभा में हुई बैकडोर भर्तियों के बारे में एक आरटीआई के माध्यम से कुछ जानकारियां मांगी गई थी। लेकिन उपसचिव एवं अपीलीय अधिकारी के यहां से उन्हें जवाब देने की बजाय एक पत्र भेज दिया गया कि आपके द्वारा प्रेषित अनुरोध पत्र अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत किया गया है इसलिए सूचना आयोग द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों के अनुसार जो अनुरोध पत्र अंग्रेजी भाषा में प्रेषित किए जाएं वह स्वीकार्य नहीं है। इसलिए आपके अनुरोध को स्वीकार किया जाना संभव नहीं है।
थापर का कहना है कि आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 6ध्1 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध कोई व्यक्ति जो अधिनियम के अधीन सूचना प्राप्त करना चाहता है लिखित में या इलेक्ट्रॉनिक युक्त माध्यम से अंग्रेजी या हिंदी में या उस क्षेत्र की जिसमें आवेदन किया जा रहा है राजभाषा में फीस के साथ जो निहित हो, किया जा सकता है।
थापर का कहना है कि इस तरह का पत्र किसी आवेदनकर्ता को अपीलीय अधिकारी द्वारा लिखा जाना उसकी योग्यता पर संशय ही पैदा करने वाला है ऐसा लगता है कि विधानसभा में बैठे ऐसे अधिकारी या तो योग्य नहीं है या जानबूझकर काम की बला टालना चाहते हैं। खैर उनके द्वारा हाईकोर्ट में बैक डोर भर्तियों पर अपील दायर की गई जिसमें इन बैक डोर भर्तियों की जांच सिटिंग जज की देखरेख में कराने की मांग की गई है। जिस पर 30 नवंबर 2022 में सरकार को नोटिस जारी कर 8 हफ्ते में जवाब मांगा गया है लेकिन सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।