परमवीर चक्र विजेता मेजर होशियार सिंह #TheWarOf1971 के दौरान 3 ग्रेनेडियर की ‘C’ कम्पनी को पाकिस्तान की सीमा के अंदर जर्पाल पर नियंत्रण स्थापित करने का जिम्मा दिया गया। मेजर होशियार सिंह दहिया के नेतृत्व में पाकिस्तानी मोर्चे पर धावा बोल दिया गया जो कि अत्यंत सुदृढ़, गोले बारूद से लैस और ऐसे सैनिकों से भरा था जो एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे। भीषण प्रत्युत्तर के बावजूद, मेजर होशियार सिंह अपने साथियों संग आगे बढ़ते रहे और उनके व्यक्तिगत साहस से प्रेरित उनकी टुकड़ी मौत को छकाते हुए अपना ध्येय हासिल करने में सफल हुई।
परन्तु वह विजय निर्णायक नहीं थी क्योंकि पराजय से तिलमिलाए दुश्मन ने अपनी शक्ति खोये हुए मोर्चे की पुनर्प्राप्ति में झोंक दी। तीन बार लौट कर दुश्मन ने ऐसा हमला किया कि जर्पाल का रक्षण असंभव सा प्रतीत होता था। इसमें से दो हमले तो टैंकों के साथ थे। मेजर होशियार सिंह की टुकड़ी के सामने काल नाच रहा था परन्तु उन्होंने अपने साथियों का उत्साहवर्धन करते हुए हर हमले को नाकाम किया। जर्पाल पर भारत की मुट्ठी ढीली नहीं होने दी। भारी गोली-बारी के बीच मेजर होशियार सिंह अपनी जान की परवाह न करते हुए स्वयं अपने सैनिकों के बीच जा जा कर प्रतिरक्षण का नेतृत्व कर रहे थे, जिससे वे स्वयं गंभीर रूप से घायल हो गए। इसी बीच भीषण गोला बारी के चलते एक मशीन गन पोस्ट में हुए विस्फोट से वह सैनिक घायल हो गया जो मशीन गन संभाले हुए था। घायल अवस्था में ही मेजर होशियार सिंह वहाँ जा पहुँचे और मशीन गन संभाल ली क्योंकि उन्हें पता था उनके मोर्चे की एक मशीन गन का शान्त होना मतलब निश्चित पराजय।
उनके इस पराक्रम से सभी सैनिकों में ऊर्जा का संचार हुआ और तीन दिन तक चले आक्रमण से उन्होंने जर्पाल का सफल रक्षण किया। इस पराक्रम से दुश्मन के पैर उखड गए और वह अपने 85 साथियों के शव तक पीछे छोड़ भागा जिसमे उनका कमान अधिकारी भी शामिल था। जब तक मेजर होशियार सिंह आश्वस्त नहीं हो गए कि दुश्मन ने पराजय स्वीकार कर ली है, तब तक उन्होंने मोर्चे से हटने से मना कर दिया। तब तक ढाका पर विजय पायी जा चुकी थी, युद्धविराम की आधिकारिक घोषणा हो चुकी थी। 18 दिसंबर की सुबह मेजर होशियार सिंह को सुरक्षित स्थान ले जा कर उनको चिकित्सीय सेवाएँ मुहैया करायीं गयीं।
उनके इस अदम्य साहस, प्रेरणाप्रद नेतृत्व एवं दृढ़संकल्प के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया और इस सर्वोच्च सम्मान के प्रथम जीवित प्राप्तकर्ता बने।
इस परमवीर के जन्मदिवस पर इन्हें मेरा सलाम। पूर्व थल सेनाध्यक्ष वीके सिंह