भोपाल। मध्यप्रदेश के अंगरोठा गाँव की रहने वाली 19 वर्ष की बबिता राजपूत ने 2018 में गाँव की 200 महिलाओं के साथ मिलकर खाई खोदकर पहाड़ो से बहता बारिश का पानी पुरातन तालाब में इकट्ठा करके मृत तालाब और सूखी नदी को जीवित किया और सूखा पीड़ित गाँव की वर्षों पुरानी जल समस्या का समाधान कर दिया। अब 1400 की आबादी वाले गाँव की नहरों में भरपूर पानी है और किसान आसानी से सिंचाई कर रहे है। बबिता राजपूत का नाम मीडिया में कभी सुना? क्या किसी पर्यावरण संरक्षण संगोष्ठी में बबिता की मेहनत, सूझबूझ और सफलता पर चर्चा हुई? क्या बबिता राजपूत असली पर्यावरण संरक्षण योद्धा नहीं? लेकिन आपने बबिता राजपूत का नाम कभी नहीं सुना क्योंकि बबिता ने कभी अपने देश को गाली नहीं दी। कभी ट्रम्प से नहीं पूछा ‘How dare you?’ कभी सरकार को, दुनिया को अपनी समस्या का जिम्मेदार नहीं माना। उसने समस्या देखी और खुद हल ढूँढा। मोर्चा नहीं निकाला, आंदोलन नहीं किया और न ही पर्यावरण के नाम पर लाखों करोड़ों का फंड या इनाम प्राप्त किये। उसने कभी मोदी के मरने की बात नहीं कही। उसने कभी ग्रेटा थनबर्ग नामक पर्यावरण के नाम पर पलने वाली आन्दोलनजीवी के साथ मिलकर भारत की छवि को खराब करने का टूलकिट षड्यंत्र नहीं रचा। बबिता की सोच नकारात्मक और देश विरोधी नहीं है इसलिए जाहिर है हमारे मीडिया को उसमें दिशा जैसी दिशाहीन लड़की जैसा मसाला और ग्लैमर नहीं मिला, वामपंथियों और देशविरोधी ताकतों को मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव गढ़ने का मौका नहीं मिला इसलिए बबिता को कोई नहीं जानता। लेकिन हम बबिता को शाबाशी देंगे। हम बबिता की चर्चा करेंगे। हम बबिता को प्रसिद्ध करेंगे। हम बबिता को उदाहरण बनाकर प्रस्तुत करेंगे कि असली पर्यावरण संरक्षक ऐसे होते है, दिशा जैसे षड्यंत्रकारी बटोलेबाज निकम्मे आन्दोलनजीवी पर्यावरण संरक्षक नहीं होते। हम Greta Thunberg और दिशा जैसों को अस्वीकार करते है और बबिता को हीरो मानते है!