नई दिल्ली। एक तरफ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और उनकी सरकार भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने की कसमें खा रही है तो दूसरी तरफ ब्रिटिश संसद में भारत सरकार की कृषि सुधार कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलन को लेकर चर्चा आयोजित की जा रही है। सोमवार को हुई इस चर्चा में वैसे तो ब्रिटिश सरकार ने आधिकारिक तौर पर कृषि सुधार को भारत का आंतरिक मामला करार दिया, लेकिन भारत सरकार ने एक विदेशी संसद में हुई चर्चा की आड़ में भारतीय लोकतंत्र व यहां प्रेस अभिव्यक्ति संबंधी मुद्दों को उठाने की कड़ी निंदा की है।
लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया जारी करते हुए इस चर्चा को एकतरफा, दुर्भावनापूर्ण और सत्य से परे बताया है। इधर, नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने भी ब्रिटेन के नए उच्चायुक्त एलेक्स एलिस को तलब किया और ब्रिटिश संसद में हुई चर्चा पर गहरी नाराजगी जताई। भारत की इस प्रतिक्रिया को दोनों देशों के रिश्तों में आ रही नई गर्माहट में अवरोध के तौर पर देखना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन यह सच है कि कोरोना और ब्रेक्जिट के बाद जब दोनों तरफ की सरकारें नए गठबंधन को लेकर बातचीत कर रही हैं, तब इस तरह की घटनाओं से एक हिचक पैदा होती है। वैसे इस तरह की चर्चा पर ब्रिटिश सरकार भी रोक नहीं लगा सकती, क्योंकि वहां के कानून के मुताबिक ब्रिटिश संसद को अगर किसी भी विषय पर एक लाख से ज्यादा लोगों की तरफ से चर्चा का प्रस्ताव आता है तो उसे यह स्वीकार करना पड़ता है। पिछले शुक्रवार को नई दिल्ली में ब्रिटेन के उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने और उसके बाद ब्रिटिश संसद में जारी चर्चा का जवाब देते हुए जॉनसन सरकार में विदेश राज्य मंत्री नाइजल एडम्स ने कृषि सुधार को भारत का आंतरिक मामला करार दिया। एडम्स ने यह कहा कि भारत के साथ ब्रिटेन के रिश्ते बहुत अच्छे दौर में हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कठिन मुद्दे को एक-दूसरे के साथ नहीं उठा सकते।