देहरादून। उत्तराखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध साल दर साल तेजी से बढ़ रहे हैं। प्रदेश में नाबालिक बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में साल दर साल वृद्धि हो रही है। उत्तराखंड में बच्चों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अपराधों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रदेश के सभी 13 जिलों में पॉक्सो कोर्ट की स्थापना की गई है। हालांकि अभी तक देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में अलग से पॉक्सो कोर्ट संचालित हो रही हैं। इन चारों कोर्ट में सुनवाई के लिए महिला जज की नियुक्तियां भी की गई हैं। जबकि प्रदेश के दूसरे जिलों में जिला जज द्वारा ही पॉक्सो से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाती है। शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक नाबालिक बच्चों के साथ दुष्कर्म और यौन शोषण से जुड़ी मामलों के लिए गठित पॉक्सो कोर्ट की कानूनी प्रक्रिया सीधे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी द्वारा मॉनिटर होती है। ऐसे में पॉक्सो कोर्ट तेजी से न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करते हुए दोषियों को सजा सुनाती है। राजधानी देहरादून की पॉक्सो कोर्ट में 300 यौन शोषण से जुड़े मामले लंबित हैं। इन पेंडिंग केस में 90 मामलों का ट्रायल कोर्ट में चल रहा है। पॉक्सो कोर्ट में अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक इन 90 ट्रायल मामलों में आरोपी जेल से मुकदमा लड़ रहे हैं। देहरादून पॉक्सो कोर्ट में लगातार तेजी से मामलों की सुनवाई जारी है। उसी का परिणाम है कि कोर्ट द्वारा बीते कई वर्षों में दोषियों को 20 साल से लेकर आजीवन कारावास और फांसी की सजा भी सुनाई गई है। .शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक देहरादून पॉक्सो कोर्ट में स्टेनो जैसे स्टाफ की कमी के कारण कई बार कानूनी प्रक्रिया में अधिक समय लग जाता है। स्टेनो एक ही होने की वजह से बयानों को दर्ज करने, जजमेंट लिखने के साथ दूसरी न्यायिक प्रक्रिया में समय लगता है। ऐसे में अगर कोर्ट में दो स्टेनो की नियुक्ति हो तो कानूनी प्रक्रिया में तेजी आएगी। पॉक्सो कोर्ट के अधिवक्ताओं के मुताबिक जेल में बंद मुल्जिमों की कोर्ट में देरी से पेशी के चलते कानूनी प्रक्रिया बाधित होती रहती है।