गीताली सैकिया की कलम से–
आज से हमारा मुख्य पर्व बोहाग बिहू आरंभ हुआ, बोहाग वैशाख महीने का असमिया शब्द है ..इसे बिहू को रोंगाली बिहू भी कहते हैं। परंपरा है कि हम पर्व की शुरुआत गौ पूजन से करते हैं। बिहू का पहला दिन गोरु बिहू के नाम से जाना जाता है.गाय को हम गोरु कहते हैं। आज के दिन हम सुबह में हम गाय को नदी या पुखुरी (तालाब) पर ले जाकर नहलाते हैं.यहाँ पर पूरा गांव अपनी अपनी गायों के साथ इकट्ठा होता है. बच्चे बूढ़े मा हल्दी के लेप से नहाते हैं.साबुन का इस्तेमाल नही होता. एक दिन पहले ही पतली पतली लचकदार लकड़ियों में लौकी(लाऊ), बेजोना(बैगन) , खुकरी आदि के छोटे छोटे टुकड़े माला की तरह गूंथ लिए जाते हैं.और गाय को नहलाकर बच्चो के साथ क्रीड़ा करते हुए गाते हैं
लाऊ खा बेजोना खा दिने दिने बारही जा.
मा रे होरु बापी रे होरु तोय होबी बोर गोरु
मतलब , हमारे बच्चों ! लौकी खाके बैगन खाके दिन दिन बढ़ते रहो….मा छोटी है, पिता छोटा है लेकिन तुम बड़ी गाय के जैसा विशाल बनो। फिर नदी से गाय को घर ले जाते हैं ..उसके लिए पीथा(एक प्रकार का पकवान) तैयार करते हैं .शाम में गाय को पीथा खिलाने के बाद एक नए बंधन से, जिसे हम पोघा कहते हैं, से गुहाली में बांध देते हैं। गुहाली मतलब गाय का घर.इसके बाद जाक जलाते हैं। जिससे गाय के पास माखी( मख्खी) , मच्छर आदि न आ सकें, साथ में गाते हैं –
दिघोलोटी दिघोल पात
माखी मारू जात जात !
आज के दिन की एक खास बात और होती है. आज हम लोग जो सब्जी बनाते हैं वो 101 प्रकार की सब्जियों का मिक्स होती हैं.ऐसा माना जाता है कि ये स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और हमे निरोग काया प्रदान करती है।
गाय पूजन के बाद घर मे जो सब्जी बनती है वो सौ सब्जियों का मिश्रण होती है. यही परम्परा है. लेकिन वो जमाना और था जब सौ सब्जियां पाना आसान था ..आप जंगल मे गए और तोड़ लाये सौ सब्जियां ..और पका लिया। लेकिन अब ऐसा नही है….अब मुश्किल से तीस से चालीस सब्जियां मिल पाती हैं.आज मैंने करीब बड़ी मुश्किल से पैतीस चालीस प्रकार की सब्जियों की व्यवस्था की है। लेकिन परम्परा तो सौ प्रकार की सब्जियों को मिक्स करके पकाने की है।
ऐसे में क्या करें.तो हमारे यहां ( शायद पूरे भारत मे ) एक पीले रंग का चींटी (ंदज) होता है . इसे ।ंउसवप च्नतनं बोलते हैं .जो सामान्यतः पेड़ो पर पाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये सब कुछ खाता है तो उसका इस्तेमाल करते हैं। इसे सब्जी में नही डाला जाता बल्कि खाते वक्त हल्का सा परम्परा को निभाने के लिए इसे होठ से टच करके औपचारिकता पूरी की जाती है.हालांकि जिन्हें पसंद है वे खाते भी हैं।
नार्थईस्ट प्रेम को बहुत अच्छे से सेलिब्रेट करता है..वैसे भी यहाँ कोई प्रेम करने को लेकर कोई बहुत बड़ी बंदिशें नही हैं.दो लोग जब भी प्रेम करते है तो कुछ दिन बाद ही पूरे समाज और परिवार को पता चल जाता है…नही तो खुद ही बता देते हैं.इसके बाद लोग ये मान लेते हैं की इन दोनों की शादी फिक्स है.और वे जोड़े के रूप में देखे जाने लगते है। रेयर केस में ऐसा भी होता है कि कई बार परिवार वाले अप्प्रुवल नही देते तो ऐसे में प्रेमी जोड़े चुपचाप बिहू का इंतजार करते हैं.और बिहू आते ही भाग जाते हैं। फिर परिवार द्वारा उन्हें बुलाया जाता है और लड़के की फॅमिली लड़की के घर तामुल पान का शगुन लेकर जाती है…इस प्रकार शादी फिक्स हो ही जाती है। बोहाग बिहू को इस वजह में मजाक में भाग बिहू भी कहते हैं।