देहरादून। उनका मंत्रालय देश में ब्लैक स्पॉट (वे स्थान जहां दुर्घटनाएं बहुत अधिक होती हैं) की पहचान करने और उन्हें ठीक करने के लिए भारतीय सड़क कांग्रेस (आईआरसी) द्वारा तैयार किए गए वैज्ञानिक दिशानिर्देशों का प्रसार करे। केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री लिखे पत्र में इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के अध्यक्ष (एमेरिटस) के.के कपिला ने कहा,“सड़क नेटवर्क से ब्लैक स्पॉट या ग्रे स्पॉट खत्म किए गए तो दुर्घटना या भिड़ंत के आंकड़ों के लिहाज से राज्यों की सड़क सुरक्षा में निश्चित रूप से स्पष्ट अंतर नजर आएगा। लेकिन ब्लैक स्पॉट खत्म करने के लिए देश में अभी तक जो अभियान चलाए गए हैं या चलाए जा रहे हैं उनमें सड़क मंत्रालय, एनएचएआई और एनएचआईडीसीएल के फील्ड अधिकारी पड़ताल और सुधार के उचित वैज्ञानिक दिशानिर्देशों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। फील्ड अधिकारियों द्वारा अपनाए जा रहे कम, मध्यम और दीर्घ अवधि के उपाय पूरी तरह कामचलाऊ हैं और देश भर में ब्लैक स्पॉट या ग्रे स्पॉट की पहचान के लिए पूरे देश में कोई भी वैज्ञानिक तरीका नहीं अपनाया जा रहा है।
श्री कपिला ने कहा,“सरकार का ब्लैक स्पॉट कार्यक्रम 2015 से जारी है, जब सड़क मंत्रालय ने ब्लैक स्पॉट की पहली सूची जारी की थी। मगर छह वर्ष बाद भी हम हर वर्ष होने वाली दुर्घटनाओं और भिड़ंत की संख्या के लिहाज से देश की सड़क सुरक्षा में कोई सुधार नहीं कर सके हैं। शायद इसकी एक वजह ब्लैक स्पॉट से निपटने का काम चलाऊ रवैया है। ढेर सारा प्रयास और संसाधन खर्च किए गए हैं मगर उनके अनुपात में फायदा नहीं मिला है।”उन्होंने कहा,“केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने हाल ही में मंत्रालय, एनएचएआई और एनएचआईडीसीएल के सभी क्षेत्रीय अधिकारियों और परियोजना निदेशकों को निर्देश दिया है कि सभी ब्लैक स्पॉट और ग्रे स्पॉट खत्म कर देश में सड़क सुरक्षा की स्थिति सुधारने में तेजी लाई जाए। ब्लैक स्पॉट हटाने का अधिक से अधिक फायदा हासिल करने की दिशा में यह गंभीर प्रयास है। मगर अभी सुधार के लिए ढांचागत बदलाव जैसे उपायों में सड़क सुरक्षा इंजीनियरिंग का ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो रहा है और सड़क क्षेत्र की विभिन्न एजेंसियों, लोक निर्माण विभाग, राज्य सड़क विकास निगम, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), नगर निगम और परिषद तथा ग्राम पंचायतों के जिन फील्ड अधिकारियों को ऐसे स्थान पहचानने, पहले से चिह्नित स्थानों का फिर आकलन करने और जरूरी सुधारात्मक उपाय करने की जिम्मेदारी मिली है, उनके अवैज्ञानिक तरीकों के कारण वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं।