देहरादून। आम आदमी पार्टी के संगठन समन्वयक जोत सिंह बिष्ट ने आ प्रदेश कार्यालय में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य में कल दो ऐसी घटनाएं चर्चा का विषय रही जिन घटनाओं ने देवभूमि को शर्मसार करने का काम किया है। इनमें से एक घटना ने तो निर्भया कांड की याद को ताजा कर दिया। दूसरी घटना ने राज्य के जनसेवकों द्वारा पिछले 22 साल से किए जा रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने का काम किया। राज्य की विधानसभा में जहां अधिकतम 125 से 150 लोगों से काम चलाया जा सकता था वहाँ हर विधानसभा अध्यक्ष ने बिना जरूरत के नियम कानून को ताक पर रखकर, नियुक्तियाँ करके 500 से अधिक लोगों को लोगों की भीड़ जमा कर दी। उत्तराखंड की विधानसभा में विगत 22 साल में जितने लोगों को नौकरी दी गई उतने लोगों के लिए विधानसभा भवन में बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है इतने लोगों के लिए विधानसभा सचिवालय में कोई काम भी नहीं है। जिम्मेदार लोगों द्वारा बिना जरूरत के आवश्यकता से ज्यादा लोगों को भर्ती करने से जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे को बर्बाद करने का अपराध किया गया है। इस तरह अनियमित तरीके से नौकरी बांटने से पात्र बेरोजगारों का हक भी मारा गया है।
उन्होंने आगे कहा कि विधानसभा में नौकरियों की भर्ती घोटाले की जांच के लिए गठित समिति की रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष जी को मिलने पर उन्होंने 2012 से 2022 के बीच की गई 228 नियुक्तियाँ निरस्त कर दी। इसके हेतु विधानसभा अध्यक्ष जी का आभार व्यक्त करता हूं। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष जी का यह फैसला अधूरा और एकतरफा फैसला है। फैसले में एक पक्ष के खिलाफ कार्रवाई हुई, लेकिन असली दोषियों के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष जी या मुख्यमंत्री जी ने मौन साध लिया है। ऐसा करके मुख्यमंत्री जी अपनी सरकार की शाख बचाने का जो प्रयास कर रहे हैं उसको उत्तराखंड कि प्रबुद्ध जनता बाखूबी देख समझ रही है। विधानसभा में बैकडोर भर्तियों की खबर सार्वजनिक होने के दिन से लेकर आज तक भाजपा-कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दल, राज्य की जनता लगातार मांग कर रही है कि जिन लोगों ने अवैध तरीके से नौकरियों की बंदरबांट की, गलत तरीके से नौकरियां बेचकर हकदार एवं पात्र बेरोजगार लोगों के हक पर चोट की, उनके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई की जाए, लेकिन ऐसा करने के बजाय केवल नौकरियां निरत की गई हैं।
उन्होंने कहा सवाल यह है कि जब अवैध तरीके से नौकरी पाने वाले को दोषी मानकर उसकी नौकरी समाप्त की गई तो फिर नियम कानून की मोटी मोटी किताबों को पढ़कर विधानसभा को संचालित करने, विधानसभा को नियंत्रित करने वाले जानकार लोगों द्वारा जानते बूझते अवैध तरीके से नौकरी बांटने और बेचने वाले महानुभाव ज्यादा बड़े दोषी हैं। उनके खिलाफ मौन धारण करना, उनके खिलाफ कुछ भी फैसला न लेना, न्याय संगत नहीं है, कानून सम्मत नहीं है। नौकरी पाने वाला बेरोजगार था, जरूरतमंद था, नियम कानून का जानकार नहीं था, जबकि नौकरी देने वाला शख्स नियम कानून का जानकार था। इसलिए जानकार व्यक्ति कैसे दोषमुक्त हो सकता है। उनको क्लीन चिट देने का मतलब साफ है कि भजपा और कांग्रेस इस मामले को मिलकर निपटाना चाहती हैं। मुख्यमंत्री जी ने विधानसभा अध्यक्ष जी के फैसले पर मोहर लगाकर जनता में वाहवाही लूटने का जो रास्ता अपनाया उसको भी उत्तराखंड की जनता देख और समझ रही है। अवैध नौकरियां समाप्त करना एक पक्ष है, लेकिन गलत तरीके से नियुक्ति देने वाले पिछले कार्यकाल के विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान में राज्य सरकार में वित्त और शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जी जिनके द्वारा नियुक्तियां की गई अभी भी जर्मनी में ठाठ से घूम रहे हैं, उनको इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता दिखाई दे रहा है। सरकार द्वरा उनको तत्काल तलब कर पद मुक्त करना चाहिए था, लेकिन इसपर कोई बात नहीं हो रही है। दूसरे महानुभाव गोविंद सिंह कुंजवाल जी अपना राग आलाप कर समझ रहे हैं कि एक बयान देकर उनके पाप धुल जाएंगे। अभी तक अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती परीक्षा घोटाले में लिप्त सफेद पोश लोग भी कानून के शिकंजे से बाहर हैं, जिस पर सरकार लीपापोती कर रही है।