नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अच्छे और बुरे स्पर्श की पारंपरिक अवधारणाओं के साथ ही नाबालिगों को आभासी स्पर्श (वर्चुअल टच) के बारे में भी सिखाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि नई अवधारणा को उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
नाबालिग का यौन उत्पीड़न करने व देह व्यापार में धकेलने के आरोपित की मदद करने वाली महिला आरोपित की याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि नाबालिगों को ऑनलाइन बातचीत को सुरक्षित रूप से नेविगेट करने और साइबरस्पेस में छिपे संभावित जोखिमों को पहचानने के लिए जागरुक करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि परंपरागत रूप से नाबालिगों को नुकसान से बचाने के लिए उन्हें शारीरिक तौर पर अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में सिखाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। जबकि, आज की आभासी दुनिया में आभासी स्पर्श की अवधारणा को शामिल करने के लिए इस शिक्षा का विस्तार करना महत्वपूर्ण है।
अदालत ने कहा कि इस संबंध में स्कूलों, कालेजों, दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ-साथ दिल्ली न्यायिक अकादमी जैसे संबंधित हितधारकों को कार्यक्रम, कार्यशालाएं और सम्मेलन आयोजित करने के निर्देश देने का यह सही समय है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी 16 वर्षीय लड़की पर यौन उत्पीड़न करने और उसे देह व्यापार के लिए मजबूर करने में मुख्य आरोपित व उसके बेटे की मदद करने की आरोपित महिला की याचिका खारिज करते हुए की। अदालत ने कहा कि नाबालिग का आरोपित द्वारा अपहरण कर लिया गया था और लगभग 20 से 25 दिनों तक उसका यौन उत्पीड़न किया गया था।
अदालत ने कहा कि जिस तरह बच्चों को भौतिक दुनिया में सावधानी बरतना सिखाया जाता है, उसी तरह उन्हें ऑनलाइन संपर्कों की विश्वसनीयता का आकलन करने और उनकी व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करने के लिए सिखाने के प्रयास किए जाने चाहिए।